स्व.डा.श्रीहनुमच्छरण पाठकजी महाराज
स्व.डा.श्रीहनुमच्छरण पाठकजी महाराज
सत्य वाक्य है – यथा नाम तथा गुण,
स्व.डा.श्रीहनुमच्छरण पाठक, भगवान् श्रीहनुमानजी के समान मेधा वाले हमारे महाभाग का जन्म श्रावण कृष्ण अष्टमी को तदनुसार 17/07/1949 को उनके मामाग्राम दशरंगपुर मे अत्यन्त तीक्ष्ण मेधा के साथ हुआ। जन्म के पश्चात् अपनी भूमी ग्राम मोहगांव में बालपन व्यतीत करके कक्षा तृतीय उत्तीर्ण करने के पश्चात् पुन: मामा गांव म़ उन्होंने अपने जीवन के चार वर्ष अध्ययन में व्यतीत किए।
इसी बीच उन्हें संस्कृत भाषा के प्रति रुचि हुई तो वे दशरंगपुर से संस्कृताध्ययन हेतु ग्राम बोड़तरा में श्रीचन्द्रदत्त शास्त्री जी के पास गए वहां उन्होंने तीन महीने में सीखने की विषय-वस्तु एक महीने में ही पूर्ण कर ली ऐसी द्रुत गति देखकर शास्त्री जी ने हाथ खड़े कर दिए एवं उन्हें धमतरी में श्रीमान् हनुमानप्रसाद ब्रह्मचारीजी के समक्ष जा कर विद्या ग्रहण करने को कहा। गुरु आज्ञा शिरोधार्य कर वे चले गए धमतरी। वहां भी तीन वर्ष की विषय-वस्तु को मात्र एक वर्ष भर में समाप्त कर ब्रह्मचारीजी से बोले कि हमें और विस्तार से पढ़ाई करनी है।
तब ब्रह्मचारी के कथनानुसार वे वाराणसी चले गए। वहां उन्होंने (BHU) से वैदिक व्याकरण व पाणिनीय व्याकरण में शास्त्री व आचार्य की उपाधि प्राप्त किए।
फिर उन्होनें गृह में मातृ इच्छा को पू्र्ण करने हेतु विवाह किये एवं विवाहोपरांत पुन: दो वर्ष बनारस में व्यतीत किए।
शेषकाल में उन्होंने सन्त-सानिध्य में रहकर अलभ्य साधना प्राप्त की। जब वे सन्तों के मध्य प्रश्न करते थे तब ऐसे गूढ़ व कठिन प्रश्न को सुनकर विद्वान भी मौन हो जाया करते थे, तब उन्हें उनके गुरु जी ने कहा कि किसी को मौन करना उचित नही। तबसे वे इतने सहज हुए कि जब तक कोई अपनी गलती न पूछे वे बताते भी नही थे।
दो वर्ष पूर्ण करने के पश्चात् वे रायपुर आ गए वहां उन्होनें दो विषयों (ज्योतिष एवं दर्शन) में एक साथ M.A की पढ़ाई प्रारम्भ की, लेकिन संयोग ऐसा कि दोनों विषयों की कुछ परीक्षाएं समान दिनांक में हुई। अत: वे ज्योतिष छोड़ दर्शन में आगे बढ़े, किन्तु उन्हें जितना ज्ञान दर्शन में था उतना ही ज्ञान ज्योतिष में भी था। उन्होंने अपनी आगे की पंचवर्षीयशिक्षा P.H.D. रायपुर में की। सभी परिक्षाओं में अंतिम के एक महीने की पढ़ाई के स्वरूप उन्होंने भारतवर्ष में प्रथम स्थान प्राप्त किया। उनका विषय कालिदास व भवभूति के पदो पर तुलनात्मक अध्ययन पर थिसिज़ लिख राष्ट्रपति से स्वर्णपदक प्राप्त किया।
PHD करते ही उन्हें कालेज में प्रोफेसर के रुप में कार्यरत किया गया। वहां दो तीन वर्ष कार्य करने के पश्चात स्वत: निवृत्त होकर पाण्डित्य करने का निर्णय ले वे पुन: ग्राम आ गए। पुत्र/पुत्री की उच्च शिक्षा हेतु वे मुंगेली आकर निवास करने लगे। जब वे मुंगेली में श्रीमद्भागवत की कथा में व्यास मंच पर आसीन थे तब मुंगेली के समीप ग्राम मे स्वामी श्रीरामभद्राचार्यजी का आगमन हुआ। उनके द्वारा श्रीकरपात्री जी महाराज के लिए कटु वचन सुन वे रह न सके, उन्होनें स्वामी श्रीरामभद्राचार्यजी को शास्त्रार्थ के लिए आमन्त्रित किया। तीन बार भिन्न भिन्न स्थानों में स्वामी श्रीरामभद्राचार्यजी जी की हार ने स्वामी जी को ये बताया कि शायद इस विद्यावान के समक्ष नतमस्तक होकर क्षमा याचना ही उचित है एवं स्वामीश्रीरामभद्राचार्यजी ने वैसा ही किया। सदा शान्तप्रिय रहे, उनमें गुरु प्रेम भी उतना ही गूढ़ था। घर में सदा शान्ति बना कर रखने वाले माननीय स्व.डा.श्रीहनुमच्छरण पाठक महाभाग ने जीवन से सन्यास लेकर मार्गशीर्ष शुक्ल तृतीया को तदनुसार 15/12/2023 गोलोक की ओर प्रस्थान करने का निर्णय लिया।